मैंदान वही , खिलाङी वही , विलेन कोई खिलाङी नही , वो तो अंपायर निकला।
मैं बात कर रहा हूं दांबुला मे खेला गये भारत श्रीलंका के बीच खेले गये मैच की। दांबुला के इस मैंच में कैप्टन कूल ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। यह मैच श्रीलंका के हिसाब करो या मरो जैसा था क्योंकि अगर श्रीलंकाई टीम यह मैच हार जाती तो वह फाइनल से बाहर हो जाती। भारत के पास तो फिर भी अभी एक मौका है। लेकिन रविवार को जो भी हुआ उससे फिर एक बार सिंहलीयों पर खेल भावना के साथ खेलने पर उंगली उठने लगी है।
अभी भारत के साथ खेलते हुऐ पिछले मैच में सूरज रणदीव के द्वारा सहवाग को फेका गया नो बॉल विवाद थमा भी नही था कि श्रीलंकाई अंपायर धर्मसेना के द्वारा एक नया विवाद खङा कर दिया गया। धर्मसेना के द्वारा दिया गया फैसला कहीं न कहीं यह जरुर दर्शाता है कि वो अभी भी एक ईमानदार अंपायर कि भूमिका में नहीं है।
क्या धर्मसेना इस मैच में अंपायरिंग करने उतरे थे या फिर श्रीलंका के बारहवें खिलाङी के रुप में मैंदान पर आये थे। क्योंकि कही से यह लग ही नही रहा था कि वो अंपायरिंग कर रहे हो। रविवार के मैंच में उनकी अंपायरिंग देखकर तो ऐसा लग रहा था कि कहीं न कहीं उनके अन्दर अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाने की ललक हो या फिर रणदीव – सहवाग विवाद का वो निकालना चाह रहे हो। खैर उनके दिमाग में कुछ भी चल रहा हो लेकिन इससे नुकसान किसे हो रहा है। गौरतलब है कि अगर बी.सी.सी.आई. आई.सी.सी से इस बारे में कुछ शिकायत करती है तो मैंच रिव्यू में जाऐगी। तो धर्मसेना को तलब भी किया जाऐगा हो सकता है कि अंपायर रेंटिग प्वांइट में उनके कुछ प्वांइट कट भी जाए। लेकिन इससे क्या उन्हे जो करना था वो तो कर गए। लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ भारत इस सीरीज में भारत एक और शर्मनाक हार का स्वाद चखा। लेकिन इस पूरे विवाद ने एक सवाल जरुर खङा दिया है कि इससे नुकसान किसका हो रहा है। श्रीलंकाई टीम का नहीं मैंन – इन – ब्लू का नही। नुकसान तो हो रहा है इस जेन्टलमैन खेल का जिसे क्रिकेट कहते हैं।